निदेशक का पृष्ठ

निदेशक का संदेश

संस्थान के अनुसंधान कार्यकलापों का उद्देश्य जीन का कार्यात्मक लक्षण-वर्णन, रोगजनक तथा नये जीन तथा प्रमोटर का लक्षण-वर्णन, उच्च सुविधाओं का रखरखाव तथा ट्रांसजेनिक का विकास है । केन्द्र में सौहार्दपूर्ण रूप से कार्य करने का वातावरण है जिसमें कार्यालय-सह-प्रयोगशाला भवन के लिए जगह तथा अनुसंधान सुविधाएं, श्रम शक्ति, अन्य संस्थानों से संबंध तथा सहयोग सहित विशेषज्ञता शामिल है ।

रेशम जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान प्रयोगशाला ने उपयोगी प्रौद्योगिकियों का सफल विकास किया है और अनुसंधान परियोजनाओं के परिणाम स्वरूप प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है । इस दिशा में संस्थान ने मार्कर सहायता प्राप्त चयन के माध्यम से एनपीवी अतिसंवेदनशील सीएसआर2 के प्रति एनपीवी सहनशील मार्करों के अनुक्रमण द्वारा बाम्बिक्स मोरी न्युक्लियोपॉलिहीड्रोसिस विषाणु (बीएमएनपीवी) के प्रति सहनशील तीन बॉम्बिक्स मोरी द्विप्रज वंश विकसित किए हैं । आगे सीएसआर4 तथा सीएसआर27 द्विप्रज संकरों को ट्रांसजैनिक शहतूती रेशमकीट वंशों का विकास आरएनएआई पहुंच के माध्यम से किया जा रहा है जो वर्तमान में बीएमएनपीवी के प्रति 30% अधिक सहनशील होता है । माइक्रोस्पोरेडिया, न्यूक्लियोपॉलिहीड्रोसिस विषाणु तथा डेन्ज़ो विषाणु के एक ही बार पहचान करने के लिए एक पीसीआर आधारित बहुविधि पहचान प्रणाली विकसित की गई है जिसे पेटेण्ट के लिए फाइल किया गया है । इसी प्रकार पारअण्डाशयी तथा गैर-पारअण्डाशयी रूप में संचारित माइक्रोस्पोरीडियन जो रेशमकीटों में घातक पेब्रिन रोग का कारण बनता है, की पहचान के लिए पीसीआर आधारित नैदानिक उपकरण विकसित किया गया है ।

ऊज़ी मक्खी ग्रसन के बाद बी.मोरी में जीन अभिव्यक्ति स्तर अस्थिरता के आधार पर प्रोटीन जीन मार्कर की पहचान की गई जिसका उपयोग कम समय में प्रतिरक्षाविरोधी अभिगमों के आसान तथा सही सीमांकन के लिए किया जा सकता है । अण्डा उपरति के लिए मुख्य जीनों के अभिव्यक्ति स्तर के आधार पर उपरति प्रवर्तन के लिए बहुप्रज बी.मोरी अण्डों के वर्गीकरण का प्रदर्शन किया गया जिसके फलस्वरूप मात्रात्मक लक्षण के नुकसान के बिना 6 माह तक बहुप्रज अण्डों के किफायती संरक्षण हो सकता है । तसर रेशमकीट पारि-प्रकार जट्टा दाबा से जुड़ा विशिष्ट एसएसआर मार्कर, मूगा वंश, डब्ल्यूडब्ल्यूएस1 से जुड़ा आण्विक मार्कर जो उच्च भिन्नता दर्शाया तथा लखीमपुर एरी रेशमकीट संख्या के लिए ऊँचाई से जुड़ा जीनी मार्कर पहचाने गए जो प्राथमिकता के आधार पर उनके संरक्षण के लिए इन वंशों की विशिष्टता दर्शाया क्योंकि वे संकर में सुधार के लिए उपयोगी है । उच्च तथा निम्न कोसा लक्षणों के लिए उपरति तथा गैर-उपरति रेशमकीटों के लक्षण-वर्णन के लिए 28 एसएसआर मार्कर विकसित किए गए । आईएसएसआर मार्कर पहचाने गए जो जीनी एकरूपता के साथ 15 एरी रेशमकीटों तथा कम परिवर्तनशीलता के साथ रेशमकीटों के बीच भौगोलिक दूरी के प्रति जीनी दूरी के लिए सकारात्मक तथा ऊँचाई के लिए नकारात्मक लक्षण दर्शाया ।

डेन्ज़ोवाइरस टाइप-2 (डीएनवी-2) के भारतीय पृथक्कारी भी पहचाने गए जो क्षेत्र दशा में उच्च विषमता तथा व्यापक घटन दर्शाया जो बी.मोरी में फ्लेचरी रोग का कारण बनता है । डीएनवी-2 प्रतिरोधी बी.मोरी जननद्रव्य अभिगमों की पहचान करने में उपयोगी डीएनवी-2 के प्रति प्रतिरोधी एनएसडी-2 जीन का प्रदर्शन उपयोगी पाया गया जिससे डीएनवी-2 सहनशील संकर विकसित किए जा सके । क्लोरोप्लास्ट जीन मेट के 390, मेट के मोरस, टीआरएनएल-एफ तथा आरबीसीएल के उपयोग से 13 शहतूत प्रजातियों का एक दूसरे से संबंधित होने का डीएनए बार-कोडिंग दर्शाया । अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय जर्नलों में संस्थान के अपने 60 से अधिक अनुसंधान प्रकाशन है ।

रेशम जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान प्रयोगशाला हमेशा धारणीय तथा पर्यावरण अनुकूल तरीके से विकट चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करने के लिए नई प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करेगा ।